Monday, May 4, 2009

प्रक्रिति


सूरज की किरनें आती है
सारी कलियां खिल जाती है
आध्कार सब खो जाता है
सब जगह सुद्मर हो जाती है !!

चिदियाम गाती है मिल्झुलकर
बहते है उनके मीठे स्वर !

ठडी-ठडी हवा
चलती है जैसे मस्तानी !!

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